This poem was originally published in Hindi on 24th March, 2020.
एक क़िस्सा सुनाती हूँ मैं आज सन दो-हज़ार पचास का, वक्त हो चला था इतिहास की क्लास का।
आज सिखाना था बच्चों को दो-हज़ार बीस के बारे में, आज बताना था बच्चों को तीस मौतों के बारे में।
वो वक्त था जब फ़र्क़ था हिंदू-मुस्लिमों के बीच में, जब दंगे छेड़ दिए थे और ना रखा था प्यार को सींच के।
खुद अल्लाह को आपसी भेद-भाव में लाए थे, उनके नाम पर लड़ाई की, उनके ही बच्चे मौत की कगार पर आए थे।
उस वक्त लोग भूल चले थे भाई-चारे की कविताओं को, जिन को समझने में सदियाँ बिता दी अम्बेडकर साहब की गाथाओं ने।
यह कथा सुनकर एक बच्चे की आँखें भर आईं, उसने रोते-रोते पूछा, “ऐसा क्या भेदभाव था जिस पर पीडिया दर पीडिया लड़ आईं?”
अध्यापक ने मुस्कुराकर बच्चे को सीने से लगाया,उन्होंने कहा, “ना जाने क्यों ऐसा ख़याल व प्रेम उन लोगों के मन में नहीं आया?”